मोदी सरकार में शामिल अपना दल के बगावती तेवर खुलकर सामने आ चुके हैं। पार्टी नेता और केंद्रीय स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल साफ कह चुकी हैं कि उनकी पार्टी अपना रास्ता चुनने के लिए स्वतंत्र है। अपना दल की नाराजगी से बीजेपी को यूपी की जिन सीटों पर मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा उनमें पीएम मोदी की वाराणसी लोकसभा सीट भी शामिल है।
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से ही बीजेपी को 2014 में सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने का रास्ता मिला था जब उसने कुल 80 में से 71 सींटें जीती थी और उसकी सहयोगी अपना दल ने 2 सीटों पर विजय हासिल की थी। बीजेपी की 71 सीटों पर जीत में अपना दल के वोट बैंक की महत्वपूर्ण भूमिका थी। लेकिन 2019 चुनाव से पहले अपना दल ने बीजेपी को आंखें दिखा दी है और स्वतंत्र रास्ते पर चलने के संकेत दिए हैं। हालाकिं चर्चा कांग्रेस के साथ गठबंधन की भी हैं।
उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी के गठबंधन से बीजेपी की राह में पहले ही अवरोध खड़े हो गए हैं, ऐसे में अपना दल की नाराजगी ने उसके लिए और मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। अपना दल की नेता और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल अभी दो दिन पहले कहा कि बीजेपी अपने सहयोगियों की बात सुनने को तैयार नहीं है, ऐसे में उसके पास बीजेपी से नाता तोड़ने के सिवा कोई विकल्प नहीं है।
अपना दल के साथ छोड़ने से बीजेपी को कितना और क्यों नुकसान हो सकता है, इसके लिए उत्तर प्रदेश के जातीय समीकरण पर नजर डालनी होगी।
सबसे पहले बात करें सेंट्रल यूपी यानी मध्य उत्तर प्रदेश की तो यहां करीब 32 विधानसभा सीटें और 8 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर कुर्मी, पटेल, वर्मा और कटियार वोटर निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। वहीं पूर्वांचल के 16 जिले ऐसे हैं जिनमें कुर्मी वोटरों की तादादा 8 से 12 फीसदी तक है और यह चुनावी समीकरण बदलने की हैसियत रखते हैं।
अपना दल नेता अनुप्रिया पटेल का उत्तर प्रदेश के कुर्मी (पटेल) वोटरों में खासा दबदबा है। उत्तर प्रदेश की प्रतापगढ़, फूलपुर, प्रयागराज (इलाहाबाद), गोंडा, बाराबंकी, बरेली, खीरी, धौरहरा, बस्ती, बांदा, मिर्जापुर और वाराणसी लोकसभा सीटों पर कुर्मियों की अच्छी खासी संख्या है । इन सभी सीटों पर कुर्मी वोटरों की संख्या 8 से 12 प्रतिशत तक है।
सिर्फ पटेल मतदाताओं पर नजर डालें तो ये वोटर प्रयागराज, फूलपुर, प्रतापगढ़, बस्ती, मिर्जापुर और वाराणसी में चुनाव को किसी भी दिशा में मोड़ने में सक्षम हैं। फिलहाल अपना दल के पास दो लोकसभा सीटें हैं। मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल और प्रतापगढ़ से कुमार हरिवंश सिंह सांसद हैं। इसके अलावा यूपी विधानसभा में 9 विधायक भी अपना दल के हैं।
बीजेपी के लिए चिंता की बात यह है कि अपना दल की वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही, इलाहाबाद, फूलपुर, चंदौली, प्रतापगढ़ और कौशाम्बी में खासी पकड़ मानी जाती है। ऐसे में अगर अनुप्रिया पटेल अलग राह पकड़ती हैं तो बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती साबित होंगी।
आखिर बीजेपी से क्यों नाराज़ है अपना दल? बताया जाता है कि 2014 के चुनाव में सिर्फ 2 सीटें पर संतोष करने वाले अपना दल ने इस बार 10 सीटों की मांग की है। इन सीटों में फूलपुर, प्रयागराज जैसे अहम निर्वाचन क्षेत्र शामिल हैं।
अपना दल की नाराजगी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट भी खतरे में पड़ सकती है। अगर अपना दल ने अलग रास्ता पकड़ा तो विपक्ष वाराणसी में सारे दांव लगा देगा। सुगबुगाहट इस बात की है कि गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को विपक्ष वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ मैदान में उतार सकता है। हार्दिक पटेल की समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से अच्छी दोस्ती है।